धारा 12. धारा 7 या धारा 11 में परिभाषित अपराधों के दुष्प्रेरण के लिए दंड-जो कोई धारा 7,या धारा 11 के अधीन दँडनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, चाहे भले ही उसे दुष्प्रेरण के परिणामें स्वरूप कोई अपराध घटित हुआ हो या नही ऐसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी किन्तु जो छह मास से कम नहीं गी और जुर्माने से दंडनीय होगा।
टिप्पणियाँ-
अभियुक्त –अपीलार्थी हत्या के एक प्रकरण में अन्तर्गस्त था- परिवादी- पुलिस निरीक्षक को रिश्वत के रूप में रूपये 10,000/- भेंट करने के लिए दोषसिध्द- सुबह सबेरे परिवादी के घर पर दो आरक्षकों की उपस्थिति में रिश्वत दिया जाना अभिकथित किया गया- प्रथम सूचना रिपोर्ट दाखिल करने में 4 घंटे का विलंब यद्यपि पुलिस थाना बहुत दुर नही था- अभियुक्त फौरन ही गिरफ्तार नही किया गया- उन दो आरक्षकों में से एक की जाँच नहीं की गई- रपयों के पार्सलको सीलबन्द करने के ढंग एवं रिती में विसंगति – अपीलार्थी संदेह का लाभ पानेका हकदार है और इसलिए दोषमुक्त । ओम प्रकाश बनाम हरियाणा राज्य, ए. आई. आर. 2006 एस सी 894 = (2006) 2 एस. सी. सी. 250 =2006 (II) एम. पी. डब्ल्यु एन. 1 (एस. सी)।
धारा 7 लोक सेवक द्वारा अपने पदीय कृत्य के संबंध में वैध पारिश्रमिक से भिन्न परितोषण प्रतिग्रहीत करना-
जो कोई लोक सेवक होते हुए या ने की प्रत्याशा रखते हुए, वैध पारिश्रमिक से भिन्न प्रकार का भी कोई परितोषण किसी बात करने के प्रयोजन से या ईनाम के रूप में किसी व्यक्ति से प्रतिग्रहीत या अभिप्राप्त करेगा या करने को सहमत होगा या करने का प्रयत्न करेगा कि वह लोक सेवक कोई पदीय कार्य करे या पदीय कार्य करने का लोप करे या किसी व्यक्ति को अपनी पदीय कार्यों के प्रयोग से कोई अनुग्रह करे या करने से प्रतिविरत करे अथवा केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या संसद या राज्य के विधान मंडल या किसी स्थानीय प्राधिकारी, निगम या धारा 2 के खंड ग में वर्णित शासकीय कम्पनी अथवा किसी लोक सेवक से, चाहे नामित हो या अन्यथा ऐसे कारावास से जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी किन्तु जो छह मास से कम कीनही होगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय गा।
स्पष्टीकरण- क- “लोक सेवक होने की प्रत्याशा रखते हुए” यदि कोई व्यक्ति जो किसी पद पर होने की प्रत्याशा न रखते ए दूसरों को प्रवंचना से विश्वास कराकर कि वह किसी पद पर पदासीन होनेवाला है, और तब वह उसका अनुग्रह करेगा, उससे पारितोषण अभिप्राप्त करेगा, तो वह छल करने का दोषी हो सकेगा। किन्तु वह इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी नही है।
ख. “परितोषण”- परितोषण शब्द धन संबंधी परितोषण तक, या उन परितोषणों तक ही जो धन में आँ के जाने योग्य है, सीमित नहीं है ।
ग. “वैध पारिश्रमिक” – वैध पारिश्रमिक शब्द उस पारिश्रमिक तक ही सीमित नहीं है जिसकी माँग कोई लोक सेवक विधिपूर्ण रूप से कर सकता है, किन्तु उसके अन्तर्गत वह समस्त पारश्रमिक आता है, जिसको प्रतिग्रहीत करने के लिए वह उस सरकार द्वारा या उस संगठन द्वारा, जिसकी सेवा में वह है, उसे दी गई ।
घ. “करने के लिए हेतु या इनाम” – वह व्यक्ति जो वह बात करने के लिए हेतु या इनाम के रूप में जिसे करने का उसका आशय नही या वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है अथवा जो उसने नहीं की है, परितोषण प्राप्त करता है, इस स्पष्टीकरण के अन्तर्गत आता है।
ड़ जहाँ कोई लोक सेवक किसी व्यक्ति को गलत विश्वास के लिए उत्प्रेरित करता है कि उसके प्रभाव से उसने, उस व्यक्ति के लिए अभिलाभ प्राप्त किया है और इस प्रकार उस कार्य के लिए कोई रूपया या अन्य परितोषण इनाम के रूप में प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरित करताहै तो ऐसे लोक सेवक ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।
टिप्पणियाँ-
रिश्वत— माँग—अभियुक्त कोई जावक लिपिक नहीं है जो सम्पत्ति मूल्यांकन प्रमाण-पत्र जारी कर सकता है—वह केवल एक अनुशंसा प्राधिकारी है— यह और कि, अभिकथित रिश्वत की माँग से पूर्व उक्त सम्पत्ति मूल्यांकन प्रमाण-पत्र अग्रेषित और अन्तिम प्राधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित किया जा चुका था— यह रिश्वत की माँग के बारे में संदेह उत्पन्न करता है, अतः दोषमुक्ति उचित थी। राज्य बनाम नरसिम्हाचारी ए. आई. आर. 2006 एस. सी. 628
धारा 11. लोक सेवक जो ऐसे सेवक द्वारा की गई प्रक्रिया कारबार से सम्पृक्त व्यक्ति से प्रतिफल के बिना मूल्यवान चीज अभिप्राप्त करता है-
जो कोई लोक सेवक होते हुए अपने लिए या किसी अन्य के लिए किसी व्यक्ति से यह जानते हुए कि ऐसे लोक सेवक द्वारा की गई या की जाने वाली किसी क्रिया या कारबार से वह व्यक्ति संपृक्त हो चुका है या उसका संप्क्त होना संभाव्य है या स्वयं उसके या किसी ऐसे लोक सेवक जिसका वह अधीनस्थ है पदीय कृत्यों से वह व्यक्ति आशक्त है या किसी ऐसे व्यक्ति से यह जानते हुए कि वह इस प्रकार संप्रृक्त व्यक्ति से हितबध्द है या रिश्तेदारी रखता है किसी मूल्यवान वस्तु को किसी प्रतिफल के बिना किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसे वह जानता हो कि अपर्याप्त है प्रतिग्रीत करेगा या अभिप्राप्त करेगा, करने को सहमत होगा, या करने का प्रयत्न करेगा वह ऐसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी परन्तु जो छह मास से कम की नहीं होगी और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
जय हिंद।हमारे द्वारा कुछ वेबसाइटें हैं जो शायद आपके मतलब की हो सकती है जैसे क्राइम फ्री इण्डिया फोर्स से जुड़ने के लिये वेबसाइड है।
www.crimefreeindiaforce.com और पत्रकार बनने के लिये AMB Live न्यूज एजेंसी से जुड़ने के लिये वेबसाइट है। www.amblive.com और पत्रकारों के लिये www.rastriyapatrkarparishad.com और जिनको स्वरोजगार की जरूरत है उनके लिये www.espkindia.in और जिनको जीवन साथी की है तलाश यानि वर वधू ढूढ़ने के लिये www.rishtonkaghar.in और जो अकेले हैं यानि भारत की फेसबुक की तरह www.chatsetdate.com और अपने व्यवसाय की फ्री वेबसाइट के लिये www.landyn.in और ज्यादा जानकारी के लिये सुबह 10 से शाम 5 बजे तक सिर्फ फोन करके ही बात करें।फोन नम्बर 0800-6681155
टिप्पणियाँ-
अभियुक्त –अपीलार्थी हत्या के एक प्रकरण में अन्तर्गस्त था- परिवादी- पुलिस निरीक्षक को रिश्वत के रूप में रूपये 10,000/- भेंट करने के लिए दोषसिध्द- सुबह सबेरे परिवादी के घर पर दो आरक्षकों की उपस्थिति में रिश्वत दिया जाना अभिकथित किया गया- प्रथम सूचना रिपोर्ट दाखिल करने में 4 घंटे का विलंब यद्यपि पुलिस थाना बहुत दुर नही था- अभियुक्त फौरन ही गिरफ्तार नही किया गया- उन दो आरक्षकों में से एक की जाँच नहीं की गई- रपयों के पार्सलको सीलबन्द करने के ढंग एवं रिती में विसंगति – अपीलार्थी संदेह का लाभ पानेका हकदार है और इसलिए दोषमुक्त । ओम प्रकाश बनाम हरियाणा राज्य, ए. आई. आर. 2006 एस सी 894 = (2006) 2 एस. सी. सी. 250 =2006 (II) एम. पी. डब्ल्यु एन. 1 (एस. सी)।
धारा 7 लोक सेवक द्वारा अपने पदीय कृत्य के संबंध में वैध पारिश्रमिक से भिन्न परितोषण प्रतिग्रहीत करना-
जो कोई लोक सेवक होते हुए या ने की प्रत्याशा रखते हुए, वैध पारिश्रमिक से भिन्न प्रकार का भी कोई परितोषण किसी बात करने के प्रयोजन से या ईनाम के रूप में किसी व्यक्ति से प्रतिग्रहीत या अभिप्राप्त करेगा या करने को सहमत होगा या करने का प्रयत्न करेगा कि वह लोक सेवक कोई पदीय कार्य करे या पदीय कार्य करने का लोप करे या किसी व्यक्ति को अपनी पदीय कार्यों के प्रयोग से कोई अनुग्रह करे या करने से प्रतिविरत करे अथवा केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या संसद या राज्य के विधान मंडल या किसी स्थानीय प्राधिकारी, निगम या धारा 2 के खंड ग में वर्णित शासकीय कम्पनी अथवा किसी लोक सेवक से, चाहे नामित हो या अन्यथा ऐसे कारावास से जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी किन्तु जो छह मास से कम कीनही होगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय गा।
स्पष्टीकरण- क- “लोक सेवक होने की प्रत्याशा रखते हुए” यदि कोई व्यक्ति जो किसी पद पर होने की प्रत्याशा न रखते ए दूसरों को प्रवंचना से विश्वास कराकर कि वह किसी पद पर पदासीन होनेवाला है, और तब वह उसका अनुग्रह करेगा, उससे पारितोषण अभिप्राप्त करेगा, तो वह छल करने का दोषी हो सकेगा। किन्तु वह इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी नही है।
ख. “परितोषण”- परितोषण शब्द धन संबंधी परितोषण तक, या उन परितोषणों तक ही जो धन में आँ के जाने योग्य है, सीमित नहीं है ।
ग. “वैध पारिश्रमिक” – वैध पारिश्रमिक शब्द उस पारिश्रमिक तक ही सीमित नहीं है जिसकी माँग कोई लोक सेवक विधिपूर्ण रूप से कर सकता है, किन्तु उसके अन्तर्गत वह समस्त पारश्रमिक आता है, जिसको प्रतिग्रहीत करने के लिए वह उस सरकार द्वारा या उस संगठन द्वारा, जिसकी सेवा में वह है, उसे दी गई ।
घ. “करने के लिए हेतु या इनाम” – वह व्यक्ति जो वह बात करने के लिए हेतु या इनाम के रूप में जिसे करने का उसका आशय नही या वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है अथवा जो उसने नहीं की है, परितोषण प्राप्त करता है, इस स्पष्टीकरण के अन्तर्गत आता है।
ड़ जहाँ कोई लोक सेवक किसी व्यक्ति को गलत विश्वास के लिए उत्प्रेरित करता है कि उसके प्रभाव से उसने, उस व्यक्ति के लिए अभिलाभ प्राप्त किया है और इस प्रकार उस कार्य के लिए कोई रूपया या अन्य परितोषण इनाम के रूप में प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरित करताहै तो ऐसे लोक सेवक ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।
टिप्पणियाँ-
रिश्वत— माँग—अभियुक्त कोई जावक लिपिक नहीं है जो सम्पत्ति मूल्यांकन प्रमाण-पत्र जारी कर सकता है—वह केवल एक अनुशंसा प्राधिकारी है— यह और कि, अभिकथित रिश्वत की माँग से पूर्व उक्त सम्पत्ति मूल्यांकन प्रमाण-पत्र अग्रेषित और अन्तिम प्राधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित किया जा चुका था— यह रिश्वत की माँग के बारे में संदेह उत्पन्न करता है, अतः दोषमुक्ति उचित थी। राज्य बनाम नरसिम्हाचारी ए. आई. आर. 2006 एस. सी. 628
धारा 11. लोक सेवक जो ऐसे सेवक द्वारा की गई प्रक्रिया कारबार से सम्पृक्त व्यक्ति से प्रतिफल के बिना मूल्यवान चीज अभिप्राप्त करता है-
जो कोई लोक सेवक होते हुए अपने लिए या किसी अन्य के लिए किसी व्यक्ति से यह जानते हुए कि ऐसे लोक सेवक द्वारा की गई या की जाने वाली किसी क्रिया या कारबार से वह व्यक्ति संपृक्त हो चुका है या उसका संप्क्त होना संभाव्य है या स्वयं उसके या किसी ऐसे लोक सेवक जिसका वह अधीनस्थ है पदीय कृत्यों से वह व्यक्ति आशक्त है या किसी ऐसे व्यक्ति से यह जानते हुए कि वह इस प्रकार संप्रृक्त व्यक्ति से हितबध्द है या रिश्तेदारी रखता है किसी मूल्यवान वस्तु को किसी प्रतिफल के बिना किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसे वह जानता हो कि अपर्याप्त है प्रतिग्रीत करेगा या अभिप्राप्त करेगा, करने को सहमत होगा, या करने का प्रयत्न करेगा वह ऐसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी परन्तु जो छह मास से कम की नहीं होगी और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
जय हिंद।हमारे द्वारा कुछ वेबसाइटें हैं जो शायद आपके मतलब की हो सकती है जैसे क्राइम फ्री इण्डिया फोर्स से जुड़ने के लिये वेबसाइड है।
www.crimefreeindiaforce.com और पत्रकार बनने के लिये AMB Live न्यूज एजेंसी से जुड़ने के लिये वेबसाइट है। www.amblive.com और पत्रकारों के लिये www.rastriyapatrkarparishad.com और जिनको स्वरोजगार की जरूरत है उनके लिये www.espkindia.in और जिनको जीवन साथी की है तलाश यानि वर वधू ढूढ़ने के लिये www.rishtonkaghar.in और जो अकेले हैं यानि भारत की फेसबुक की तरह www.chatsetdate.com और अपने व्यवसाय की फ्री वेबसाइट के लिये www.landyn.in और ज्यादा जानकारी के लिये सुबह 10 से शाम 5 बजे तक सिर्फ फोन करके ही बात करें।फोन नम्बर 0800-6681155
Comments
Post a Comment