#ब्राम्हण_राजवंश - #परिचय_अंक -

#ब्राम्हण_राजवंश - #परिचय_अंक -
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हिन्दु वर्ण व्‍यवस्‍था में चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण (ज्ञानी ओर आध्यात्मिकता शिक्षण के लिए उत्तरदायी), क्षत्रिय (धर्म , समाज और जीवन रक्षक), वैश्य (व्यापारी पोषण करने वाला ) तथा शूद्र (उत्पादक ,निर्माता एवम श्रमिक समाज)। वर्णों की सैद्धांतिक अवधारणा गुणों के आधार पर थी, जन्म के आधार पर नहीं  प्राचीन समय में इसी का प्रचलन व्यवहार में था । जहाँ कर्म अनुसार वर्ण परिवर्तन किया जाता था , जहाँ कर्मानुसार क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ब्राह्मणत्व प्राप्त कर लेते है तो क्षत्रिय राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य वर्ण में सम्मिलित हो जाते है , कर्मानुसार क्षत्रिय राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र वर्ण में हो जाते है वही
वत्स शुद्र कुल में उत्तपन्न होने के बावजूद ब्राम्हण ऋषि होकर पूज्य बनते है ,नीच कुलीन वेश्या पुत्र ऐलूष ऋषि को ब्राम्हण बनाकर आचार्य पद पर आसीन किया जाता है ।मातंग, प्रवृद्ध , विश्वामित्र ,विदुर त्रिशंकु आदि अनेको उदाहरणो से वैदिक साहित्य भरा पड़ा है । आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलितों में समान गोत्र मिलते हैं , इस से पता चलता है कि यह सब एक ही पूर्वज, एक ही कुल की संतान हैं , लेकिन कालांतर में वर्ण व्यवस्था नष्ट हो गई और यह लोग अनेक जातियों में बंट गए।।

वर्ण व्यवस्था के चार अभिन्न अंगों ब्राम्हण ,क्षत्रिय , वैश्य और शुद्र सभी जातियों ने समान रूप से समाज पर शासन किया है , पश्चिमी इतिहासकारों ने इसपे भ्रम की ऐसी मोटी धूल की परत चढ़ा रखी है कि जब भी हम वास्तविक इतिहास को जानने समझने का प्रयत्न करते है तो खुद ही उलझ के रह जाते है , ये मेरे पूर्वज ये मेरे पूर्वज की लड़ाई शुरू हो चुकी है ऐसा करने वालो से सिर्फ एक सवाल - सभी मनुष्यों का डीएनए एक ही संरचना का है मतलब यदि जीनेटेकली देखा जाए तो सभी के पूर्वज एक ही है फिर पूर्वजो का झगड़ा
क्यों भाई ??

वर्ण व्यवस्था के सभी वर्णों के राजवंशो का उल्लेख जिन्होंने राज किया है मैं क्रमशः लिखूंगा शुरुआत करते है ब्राम्हण राजवंश से --

#ब्राम्हण_राजवंश_पौराणिक - 1. शुक 2. गृत्‍समद 3. शोनक 4. पुलिक 5. प्रद्यौत 6. पालक 7. विशाखपुप 8. अजय 9. नन्‍दीवर्धन राजवंश। पौराणिक उल्लेख होने का कारण इनका ऐतिहासिक महत्व कम मिलता है ।।
(गृत्‍समद एवं शोनक नाम के ऋषि भी हुए है)

#ऐतिहासिक_ब्राम्हण_राजवंश -

#सातवाहन_राजवंश (60 ई.पू. से 240 ई.) भारत का प्राचीन ब्राम्हण राजवंश था, जिसने केन्द्रीय दक्षिण भारत पर शासन किया था। भारतीय इतिहास में यह राजवंश ‘आन्ध्र वंश’ के नाम से भी विख्यात है।

#कण्व_राजवंश या ‘काण्व वंश’ या ‘काण्वायन वंश’ (लगभग 73 ई. पू. पूर्व से 28 ई. पू.) मेघस्‍वाती नामक राजा ने कणवायन ब्राह्मणों से ही मगध का राज्य लिया था।

#शुंग_राजवंश प्राचीन भारत का एक शासकीय वंश था जिसने मौर्य राजवंश के बाद शासन किया। इसका शासन उत्तर भारत में 187 ईसा पूर्व से 75 ईसा पूर्व तक यानि 112 वर्षों तक रहा था। पुष्यमित्र शुंग इस राजवंश का प्रथम शासक था।

#वाकाटक_राजवंश (300 से 500 ईसवी लगभग) सातवाहनों के उपरान्त दक्षिण की महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा। तीसरी शताब्दी ई. से छठी शताब्दी ई. तक दक्षिणापथ में शासन करने वाले समस्त राजवंशों में वाकाटक वंश सर्वाधिक सम्मानित एवं सुसंस्कृत था।

#चुटु_राजवंश के शासकों ने दक्षिण भारत के कुछ भागों पर ईसा पूर्व पहली शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी (ईसा पश्चात) तक शासन किया। उनकी राजधानी वर्तमान कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले के बनवासी में थी। अशोक के शिलालेखों को छोड़ दें तो चुटु शासकों के शिलालेख ही कर्नाटक से प्राप्त सबसे प्राचीन शिलालेख हैं।

#कदंब_राजवंश दक्षिण भारत का एक ब्राह्मण राजवंश। कदंब कुल का गोत्र मानव्य था और उक्त वंश के लोग अपनी उत्पत्ति हारीति से मानते थे। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार कदंब राज्य का संस्थापक मयूर शर्मन्‌ नाम का एक ब्राह्मण था जो विद्याध्ययन के लिए कांची में रहता था और किसी पल्लव राज्यधिकारी द्वारा अपमानित होकर जिसने चौथी शती ईसवी के मध्य (लगभग 345 ई.) प्रतिशोधस्वरूप कर्नाटक में एक छोटा सा राज्य स्थापित किया था। इस राज्य की राजधानी वैजयंती थी ।

#गंग_राजवंश (पश्चिमी) दक्षिण भारत (वर्तमान कर्नाटक) का एक विख्यात राजवंश था। इसका राज्य 250 ई से 1000 ई तक अस्तित्वमान था। ये लोग काण्वायन गोत्र के थे और इनकी भूमि गंगवाडी कही गई है। इस वंश का संस्थापक कोंगुनिवर्मन अथवा माधव प्रथम था। उसका शासन 250 और 400 ई. के बीच रहा। उसकी राजधानी कोलार थी।

#वर्मन_राजवंश-  धर्म महाराज श्री भद्रवर्मन् जिसका नाम चीनी इतिहास में फन-हु-ता (380-413 ई.) मिलता है ने वर्मन राजवंश की स्थापना की ये एक ऐसा एकमात्र राजवंश है इतिहास में जिसने चीन पर भी शासन किया है ।

#संगम_राजवंश विजयनगर साम्राज्य के 'हरिहर' और 'बुक्का' ने अपने पिता "संगम" के नाम पर संगम राजवंश (1336-1485 ई.) की स्थापना की थी। विजयनगर साम्राज्य पर राज करने वाला प्रथम ब्राम्हण शासक ।

#सालुव_राजवंश का संस्थापक 'सालुव नरसिंह' था। 1485 ई. में संगम वंश के विरुपाक्ष द्वितीय की हत्या उसी के पुत्र ने कर दी थी, और इस समय विजयनगर साम्राज्य में चारों ओर अशांति व अराजकता का वातावरण था। इन्हीं सब परिस्थितियों का फ़ायदा नरसिंह के सेनापति नरसा नायक ने उठाया। उसने विजयनगर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और सालुव नरसिंह को राजगद्दी पर बैठा दिया ।

#मोहियाल_राजवंश - (580 से 700 ईसवी)
मोहियाल दो शब्दों मोहि और आल से बनकर मिला है। मोहि यानि जमीन और आल यानि मालिक अर्थात भूमि का मालिक। इन अश्वत्थामा वंश के दत्त ब्राह्मणों को  हुसैनी ब्राह्मण भी कहा जाता है ।

#चच_राजवंश
ईस्‍वी सन् 769 के असापास अलोर चच राजवंश के
चच और चन्‍द्र ये दोनों ही राजा ब्राह्मण थे चच पुत्र दाहिर को अरब विजेता मुहम्‍मद इब्‍न कासिम ने पराजित किया था।

#भटिंडा_का_राजवंश ईस्‍वी सन् 977 के पहले जयपाल का राज्‍य था जो ब्राह्मण था।जिसे सुबुक्‍तगीन ने हराकर भटिंडा को राजधानी बनाया था।

#पेशवाई_राजवंश - (1714 - 1818 ईसवी)मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को पेशवा (मराठी: पेशवे) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। शिवाजी के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। 'पेशवा' फारसी शब्द है जिसका अर्थ 'अग्रणी' है।

#खण्डवाल_वंश इस राजवंश की स्थापना मैथिल ब्राह्मण जमींदारों ने 16वीं सदी की शुरुआत में की थी। ब्रिटिश राज के दौरान तत्कालीन बंगाल के 18 सर्किल के 4,495 गांव दरभंगा नरेश के शासन में थे। राज के शासन-प्रशासन को देखने के लिए लगभग 7,500 अधिकारी बहाल थे। भारत के रजवाड़ों में दरभंगा राज का अपना खास ही स्थान रहा है।

#इसके_अतिरिक्त_छोटे_छोटे_रियासते -
बनारस का राज , बेतिया राज , टिकारी राज, अयोध्या राज,  हथुआ राज ,तमकुही राज ,अनापुर राज, अमावा राज , बभनगावां राज , भरतपुरा राज,  धरहरा राज, शिवहर राज ,मकसुदपुर राज , औसानगंज राज आदि

#स्वनियंत्रित_जागीरे -
नरहन स्टेट, जोगनी एस्टेट, पर्सागढ़ एस्टेट (छपरा ), गोरिया कोठी एस्टेट (सिवान ), रूपवाली एस्टेट, जैतपुर एस्टेट, हरदी एस्टेट, ऐनखाओं जमींदारी, ऐशगंज जमींदारी, भेलावर गढ़, आगापुर स्टेट, पैनाल गढ़, लट्टा गढ़, कयाल गढ़, रामनगर जमींदारी, रोहुआ एस्टेट, राजगोला जमींदारी, पंडुई राज, केवटगामा जमींदारी, घोसी एस्टेट, परिहंस एस्टेट, धरहरा एस्टेट, रंधर एस्टेट, अनापुर एस्टेट ( इलाहाबाद), चैनपुर, मंझा, मकसूदपुर, रुसी, खैरअ, मधुबनी, नवगढ़ आदि

#विशेष -
ब्राह्मण का जीवन त्याग अथवा बलिदान का जीवन होता है। उसका प्रत्येक कार्य अपने लिए नहीं वरन् समाज के लिए होता है। ब्राह्मण स्वयं के लिए कुछ नहीं करता। इसी कारण उसे समाज में विशेष सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा। अपनी साधारण सी आवश्यकता रख कर ज्ञान-विज्ञान की अनवरत साधना, और उससे समाज को उन्नत एवं स्वस्थ बनाने का परम पुनीत कर्तव्य एवं महान जिम्मेदारी ब्राह्मण पर ही है। किसी भी समाज एवम राष्ट्र का पहला सम्बंध ब्राम्हण से होता है ।
वेदानुसार -

“हरातत् सिच्यते राष्ट्र ब्राह्मणो यत्र जीयते”
अर्थात -
जिस देश का ब्राह्मण हारता है वह देश खोखला हो जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि राष्ट्र की जागृति, प्रगतिशीलता एवं महानता उसके ब्राह्मणों (बुद्धिजीवियों) पर आधारित होती है। ब्राह्मण राष्ट्र निर्माता होता है, मानव हृदयों में जागरण का संगीत सुनाता है, समाज का कर्णधार होता है। देश काल पात्र के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन करता है और नवीन प्रकाश चेतना प्रदान करता है। त्याग और बलिदान ही ब्राह्मणत्व की कसौटी है। प्राचीन काल से ही ब्राम्हण अपने दायित्वों का निर्वहन करते आये है और करते ही रहेन्गे हम सभी ब्राम्हणो को अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी होनी चाहिए और अपने कर्तव्यों का भी हममे अभी भी वो छमता है कि हम समाज का पुनर्निर्माण कर सकते है ।।


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