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Showing posts from April, 2018
तंग करनासोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों, ई-मेल, चैट वगैरह के जरिए बच्चों या महिलाओं को तंग करने के मामले जब-तब सामने आते रहते हैं। डिजिटल जरिए से किसी को अश्लील या धमकाने वाले संदेश भेजना या किसी भी रूप में परेशान करना साइबर क्राइम के दायरे में आता है। किसी के खिलाफ दुर्भावना से अफवाहें फैलाना (जैसा कि पूर्वोत्तर के लोगों के मामले में हुआ), नफरत फैलाना या बदनाम करना। कानून - आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 66 (ए) सजा: तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना आईपीआर (बौद्धिक संपदा) उल्लंघनवेब पर मौजूद दूसरों की सामग्री को चुराकर अनधिकृत रूप से इस्तेमाल करने और प्रकाशित करने के मामलों पर भारतीय साइबर कानूनों में अलग से प्रावधान नहीं हैं, लेकिन पारंपरिक कानूनों के तहत कार्रवाई की मुनासिब व्यवस्था है। किताबें, लेख, विडियो, चित्र, ऑडियो, लोगो और दूसरे क्रिएटिव मटीरियल को बिना इजाजत इस्तेमाल करना अनैतिक तो है ही, अवैध भी है। साथ ही सॉफ्टवेयर की पाइरेसी, ट्रेडमार्क का उल्लंघन, कंप्यूटर सोर्स कोड की चोरी और पेटेंट का उल्लंघन भी इस जुर्म के दायरे में आता है। कानून - कॉपीराइट कानून 1957 की धारा 14
ई-मेल स्पूफिंग और फ्रॉडकिसी दूसरे शख्स के ई-मेल पते का इस्तेमाल करते हुए गलत मकसद से दूसरों को ई-मेल भेजना इसके तहत आता है। हैकिंग, फिशिंग, स्पैम और वायरस-स्पाईवेयर फैलाने के लिए इस तरह के फ्रॉड का इस्तेमाल ज्यादा होता है। इनका मकसद ई-मेल पाने वाले को धोखा देकर उसकी गोपनीय जानकारियां हासिल कर लेना होता है। ऐसी जानकारियों में बैंक खाता नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, ई-कॉमर्स साइट का पासवर्ड वगैरह आ सकते हैं। कानून - आईटी कानून 2000 की धारा 77 बी - आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 डी - आईपीसी की धारा 417, 419, 420 और 465। सजा: तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना। पोर्नोग्राफीपोर्नोग्राफी के दायरे में ऐसे फोटो, विडियो, टेक्स्ट, ऑडियो और सामग्री आती है, जिसकी प्रकृति यौन हो और जो यौन कृत्यों और नग्नता पर आधारित हो। ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक ढंग से प्रकाशित करने, किसी को भेजने या किसी और के जरिS प्रकाशित करवाने या भिजवाने पर पोर्नोग्राफी निरोधक कानून लागू होता है। जो लोग दूसरों के नग्न या अश्लील विडियो तैयार कर लेते हैं या एमएमएस बना लेते हैं और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से दूसरों तक पह
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#माताएं एवं #बहनें ध्यान से पढ़ें, अगर बुरा लगे तो माफ़ कीजियेगा #लड़कियो के नग्न घूमने पर जो लोग या स्त्री ये कहते है की #कपडे नहीं सोच बदलो.... उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है??? 1)हम #सोच क्यों बदले?? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपने लोगो की सोच का #ठेका लिया है क्या?? 2) आप उन लड़कियो की सोच का #आकलन क्यों नहीं करते?? उसने क्या सोचकर ऐसे कपडे पहने की उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है....इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी?? एक #निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे,वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उस देखे 3)अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए??? आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए......सोच बदलिये..वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती....आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए...उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये..... हत्या ,डकैती, चोरी, बलात्कार, आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये...सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों???? 4) कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे....पुरुष
डेटा की चोरीकिसी और व्यक्ति, संगठन वगैरह के किसी भी तकनीकी सिस्टम से निजी या गोपनीय डेटा (सूचनाओं) की चोरी। अगर किसी संगठन के अंदरूनी डेटा तक आपकी आधिकारिक पहुंच है, लेकिन अपनी जायज पहुंच का इस्तेमाल आप उस संगठन की इजाजत के बिना, उसके नाजायज दुरुपयोग की मंशा से करते हैं, तो वह भी इसके दायरे में आएगा। कॉल सेंटरों, दूसरों की जानकारी रखने वाले संगठनों आदि में भी लोगों के निजी डेटा की चोरी के मामले सामने आते रहे हैं। कानून - आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 43 (बी), धारा 66 (ई), 67 (सी) - आईपीसी की धारा 379, 405, 420 - कॉपीराइट कानून सजा: अपराध की गंभीरता के हिसाब से तीन साल तक की जेल और/या दो लाख रुपये तक जुर्माना। वायरस-स्पाईवेयर फैलानाकंप्यूटर में आए वायरस और स्पाईवेयर के सफाए पर लोग ध्यान नहीं देते। उनके कंप्यूटर से होते हुए ये वायरस दूसरों तक पहुंच जाते हैं। हैकिंग, डाउनलोड, कंपनियों के अंदरूनी नेटवर्क, वाई-फाई कनेक्शनों और असुरक्षित फ्लैश ड्राइव, सीडी के जरिए भी वायरस फैलते हैं। वायरस बनाने वाले अपराधियों की पूरी इंडस्ट्री है जिनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती है। वैसे, आम लोग
साइबर क्राइम करना भारी पड़ेगाकंप्यूटर, इंटरनेट, डिजिटल डिवाइसेज, वर्ल्ड वाइड वेब आदि के जरिए किए जाने वाले अपराधों के लिए छोटे-मोटे जुर्माने से लेकर उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है। दुनिया भर में सुरक्षा और जांच एजेंसियां साइबर अपराधों को बहुत गंभीरता से ले रही हैं। ऐसे मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 तो लागू होते ही हैं, मामले के दूसरे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि बिरले मामलों में आतंकवाद निरोधक कानून भी लागू किए जा सकते हैं। कुछ मामलों पर भारत सरकार के आईटी डिपार्टमेंट की तरफ से अलग से जारी किए गए आईटी नियम 2011 भी लागू होते हैं। कानून में निर्दोष लोगों को साजिशन की गई शिकायतों से सुरक्षित रखने की भी मुनासिब व्यवस्था है, लेकिन कंप्यूटर, दूरसंचार और इंटरनेट यूजर को हमेशा सतर्क रहना चाहिए कि उनसे जाने-अनजाने में कोई साइबर क्राइम तो नहीं हो रहा है। तकनीकी जरियों का सुरक्षित इस्तेमाल करने के लिए हमेशा याद रखें कि इलाज से परहेज बेहतर है। हैकिंगहैकिंग
धारा 12. धारा 7 या धारा 11 में परिभाषित अपराधों के दुष्प्रेरण के लिए दंड-जो कोई धारा 7,या धारा 11  के अधीन दँडनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, चाहे भले ही उसे दुष्प्रेरण के परिणामें स्वरूप कोई अपराध घटित हुआ हो या नही ऐसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी किन्तु जो छह मास से कम नहीं गी और जुर्माने से दंडनीय होगा। टिप्पणियाँ- अभियुक्त –अपीलार्थी हत्या के एक प्रकरण में अन्तर्गस्त था- परिवादी- पुलिस निरीक्षक को रिश्वत के रूप में रूपये 10,000/-  भेंट करने के लिए दोषसिध्द- सुबह सबेरे परिवादी के घर पर दो आरक्षकों की उपस्थिति में रिश्वत दिया जाना अभिकथित किया गया- प्रथम सूचना रिपोर्ट दाखिल करने में 4 घंटे का विलंब यद्यपि पुलिस थाना बहुत दुर नही था- अभियुक्त फौरन ही गिरफ्तार नही किया गया- उन दो आरक्षकों में से एक की जाँच नहीं की गई- रपयों के पार्सलको सीलबन्द करने के ढंग एवं रिती में विसंगति – अपीलार्थी संदेह का लाभ पानेका हकदार है और इसलिए दोषमुक्त । ओम प्रकाश बनाम हरियाणा राज्य, ए. आई. आर. 2006 एस सी 894 = (2006) 2 एस. सी. सी. 250 =2006 (II) एम. पी. डब्ल्
धारा 7  लोक सेवक द्वारा अपने पदीय कृत्य के संबंध में वैध पारिश्रमिक से भिन्न परितोषण प्रतिग्रहीत करना-एक. कोई व्यक्ति जो किसी लोक कर्तव्य के निर्वहन हेतु सरकार की सेवा में हहो अथवा वेतनाधीन हो अथवा इसके लिए कोई फीस, कमीशन या पारिश्रमिक प्रदत्त किया जाता हो, दो. कोई व्यक्ति जो, किसी स्थानीय निकाय की सेवा में हॉ, वेतनाधीन हो, तीन. कोई व्यक्ति, जो किसी केन्द्रीय प्रान्तीय या राज्य की किसी विधि के द्वारा या गठित किसी नियम अथवा कॉरपोरेशन या किसी निकाय जो सरकार द्वारा स्वामित्वधीन या निंयत्रणाधीन या सहायता प्राप्त है या कोई सरकारी कम्पनी जैसा कि कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956  का सं 1)  की धारा  617  में परिभाषित है, की सेवा में हो या वेतनाधीन हो, चार. कोई न्यायाधीश, या विधि द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति, जिसे स्वयं या किसी समूह के सदस्य के नाते न्याय- निर्णयन का कार्य करता हो, पाँच  कोई व्यक्ति जिसे न्याय-निर्णयन के संबंध में न्यायिलय के न्यायाधीश द्वारा किसी कर्तव्य के निर्वहन हेतु प्राधिकृत किया गया हो एवं इसमें सम्मिलित है न्यायालय द्वारा नियुक्त समापक, प्रापक या आयुक्त, छः क
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300 जातियां हैं इनकी ।स्वयं पिगम्बर मोहम्मद ने बोला था 73 फिरके होंगे मूसलों के । कौन बोलता है की इस्लाम में जातिवाद नहीं है ..? मुस्लिम एवं मनहूस सिकुलरों द्वारा अक्सर यह भ्रम फैलाया जाता है कि.... हमारे हिन्दू धर्म में बहुत ज्यादा जातिवाद है ..... जबकि, इस्लाम में समानता की भावना है....! इतना ही नहीं.... गद्दार सेकुलरों के मुंह से ऐसी बातें सुनकर तो रक्त में उबाल आ जाता है। आज कल मुस्लिम अपने लुटेरे पूर्वजों के कुकर्मों को छुपाने के लिए अब एक नया तर्क यह देने लगे हैं कि हिन्दू धर्म में जातिवाद के कारण ही बहुतायत में हिंदुओं ने इस्लाम स्वीकार कर लिया .... क्योंकि, इस्लाम जातिवाद से अछूता था और, इस्लाम में काफी भाई-चारा था...! -------------- लेकिन.. हकीकत यह है कि..... इस्लाम में जाति-व्यवस्था ... छुआ-छूत और आपसी घृणा के हद तक मौजूद है...! जैसा की सर्वविदित है कि..... इस्लाम मे शुरू से ही “शिया और सुन्नी” संप्रदाय ..... एक दूसरे की जान के दुश्मन हैं, यह लोग सालों-भर आपस में ही लड़ते-मरते रहते हैं ...!! इसके अलावा.... इस्लाम में .... अहमदिया, सलफमानी, शेख, क़ाज़ी, मुहम्मदिया
धारा 5  विशेष न्यायाधीश के अधिकार एवं प्रक्रिया-1) विशेष न्यायाधीश किन्हीं अपराधों का संज्ञान उसे विचारण के लिए अभियुक्त की सुपुर्दगी के बिना कर सकता है और विचारण के लिए दंड प्रकिता संहिता 1973(1974 का सं 2) में मजिस्ट्रेट द्वारा वारंट मामलों के विचारण के लिए विनिर्दिष्ट प्रक्रिया अपनाएगा। 2)  विशेष न्यायाधीश अपराध से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबध्द किसी व्यक्ति का साक्ष्य अभिप्राप्त करने की दृष्टि से उस व्यक्ति को इस शर्त पर क्षमादान कर सकता है कि वह अपराध के संबंध में और उसके किए जाने में चे कर्ता या दुष्प्रेरण के रूप में संबध्द प्रत्येक अन्य व्यक्ति के संबंध में समस्त परिस्थितियों की जिनकी उसे जानकारी है पूर्ण और सत्यता प्रकटन कर दे और तब दंड प्रकिता संहिता 1973(1974 का सं 2) की धारा 308 की उपधारा 1 से 5 तक के प्रयोजन के लिए समझा जाएगा कि क्षमादान उस संहिता की धारा 307 के अधीन दिया गया है। 3) उपधारा  1 की उपधारा 2  में किसी बात के होते हुए भी, दंड प्रकिता संहिता 1973(1974 का सं 2) के प्रावधान जहाँ तक वह इस अधिनियम से असंगत न हो विशेष न्यायाधीश की कार्यवाहियोँ पर लागू होंग
जय हिंद।क्राइम फ्री इण्डिया फोर्स द्वारा कम्प्यूटर निःशुल्क प्रशिक्षण केंद्र की आज दिनांक 18 अप्रैल 2018 से संस्था के मुख्य कार्यालय पर शुरुआत।
एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की। शादी के बाद दोनो की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी। वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़ किया करता था। लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग (skinDisease) से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी। खुद को इस तरह देख उसके मन में डर समाने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई, तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी।  इस बीच एकदिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसका accident हो गया। Accident में उसने अपनी दोनो आँखें खो दी। लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनो की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही। समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी। वह बदसूरत हो गई, लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।  वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा। एकदिन उस लड़की की मौत हो गई। पति अब अकेला हो गया था। वह बहुत दु:खी था. वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था।  उसने अंतिम स
भारतीय दंड संहिता की (IPC) धारा-509भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 509 उन लोगों पर लगाई जाती है जो किसी औरत के शील या सम्मान को चोट पहुंचाने वाली बात कहते हैं या हरकत करते हैं। अगर कोई किसी औरत को सुना कर ऐसी बात कहता है या आवाज निकालता है,जिससे औरत के शील या सम्मान को चोट पहुंचे या जिससे उसकी प्राइवेसी में दखल पड़े तो उसके खिलाफ धारा 509 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। इस धारा के तहत एक साल तक की सजा जो तीन साल तक बढ़ाई जा सकती है या जुर्माना या दोनों हो सकता है। जानिए भारतीय दंड संहिता की धारा 420 को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत किसी को व्यक्ति को कपट पूर्वक या बेईमानी से उत्प्रेरित कर आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, संपत्ति या ख्याति संबंधी क्षति पहुंचाना शामिल है। यह एक दंडनीय अपराध है। इसके तहत सात साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है। येअपराध हैं इसमें शामिल जब कोई व्यक्ति छल करके किसी व्यक्ति को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है जिससे वह व्यक्ति अपनी किसी संपत्ति या उसके अंश को किसी अन्य व्यक्ति को दे दें तो यह धारा-420 के अंतर्गत दंडनीय अपराध का हकदार होगा। य